Wednesday, November 26, 2008

विचार जड़ता के खिलाफ ज़ंग है- 3

विचार से हीन सूचना हमें भ्रष्ट बनाती है...


आतंकवाद कोई नया शब्द नहीं है। आज जिसे हम स्वाधीनता आंदोलन के योद्धा के रूप में याद करते हैं, अंग्रेजी सरकार उन्हें आतंकवादी कहती थी। आजादी से पहले के किसान आंदोलनों को अंग्रेज अफसरों की भाषा में डकैती की संज्ञा दी गई है। उस क्षण के आतंक को क्या हमने महसूस किया है जब किसी महान कलाकार को पाकिस्तानी पुरस्कार केवल इसलिए लौटा देने को कहा जाता है कि वह मुसलमान है। यह जानना महत्त्वपूर्ण होगा कि भारतीय क्रांतिकारियों को आतंकवादी का दर्जा देने वाली सरकार के नुमाइंदे अपने देश की संसद के सामने क्या सफाई पेश करते थे।

वायरन शेली और अर्नेस्ट जोंस के लिए भी क्या भारतीय स्वतंत्रता सेनानी आतंकवादी ही थे? और फिर जोंस को ही जेल की भयानक सजा क्योंकर मिली थी? आने वाली पीढ़ियां इन बातों का बेहतर जवाब देंगी।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बदले हुए जमाने में साहित्य की चुनौतियां भी बदली हैं। फिर भी बहुत कुछ ऐसा है जो सार्वदेशिक और सार्वकालिक होता है। आज इस ग्लोबल दौर में उदारीकरण अगर हुआ है तो नव-औपनिवेशिक लूट का। साम्राज्यवाद के दिनों में औपनिवेशिक देशों को इसी "उदार हृदय" के साथ लूटा जाता था। सभी को मालूम है कि चीन के बाजार का कैसा बंदरबांट हुआ था। वहां "खुले द्वार" या "मुझे भी" की "उदार नीति" अपना कर साम्राज्यवादी देशों ने "उदार हृदय" का नमूना पेश किया था।

लूट का उदारीकरण आज भी जारी है, लेकिन दूसरी शक्ल में। इस "ग्लोबल विलेज" वाले दौर में अमेरिका की दादागिरी कायम है और कश्मीर की समस्या आज भी हमारा घरेलू मामला है। सूचनाओं का विस्फोट है और एक हद तक उसका ग्लोबलाइजेशन भी हुआ है। लेकिन दूसरी तरफ विचार पर अंकुश लगाने की पैशाचिक मुद्रा में तनिक नरमी नहीं आई है।

पूरी दुनिया में इतिहास के अंत की घोषणा हो चुकी है। भारत के बजरंगी जब सत्ता में आए थे, इतिहास की पाठ्यपुस्तकों को बदल कर "उदारीकरण" की प्रक्रिया को आसान बनाने की पूरी कोशिश की गई। (मौजूदा सरकार इससे बहुत अलग नहीं कर रही)। सूचनाओं के साथ-साथ अफवाहों का भी वैश्विक बाजार बना है। डायनों की हत्या अब महज गांव की खबर नहीं रही। उसकी तस्वीर सीधे इंटरनेट से ली जा सकती है। आज जो शिक्षा नीति सरकार बरत रही है, उसमें मूल "इथिक्स" ही गायब है। शिक्षा सूचना बन कर रह गई है। और कहना न होगा कि विचार से हीन सूचना हमें भ्रष्ट बनाती है।

ग्लोबलाइजेशन से एक देश की अर्थव्यवस्था दूसरे किसी भी देश की जनता को तबाह करने की सामर्थ्य हासिल कर चुकी है। इसलिए उसका प्रतिरोध भी वैश्विक होगा।

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