Thursday, November 11, 2010

चुनाव से लौटकर


बिहार विधान सभा के लिए होनेवाले चुनाव (९.११.२०१०) में मुझे भी ड्यूटी पर तैनात किया गया. मेरा निर्वाचन- क्षेत्र १८८, फुलवारी था. यह पटना से महज १२ किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है. मैं मन ही मन खुश हुआ कि चलिए पटना से बहुत दूर नहीं है-एक तरह से शहर में बने रहने का संतोष. खुशी का एक कारण यह भी था कि मेरा मतदान केन्द्र एक प्राथमिक विद्यालय को बनाया गया था. उम्मीद थी कि सोने आदि में किसी तरह की असुविधा का सामना नहीं करना पड़ेगा. लेकिन रास्ते में ही मेरी खुशी हवा हो गयी. रास्ता इतना बीहड़ कि टेम्पू की सवारी छोड़ पैदल चलने की इच्छा हुई. हालाँकि सरकारी निर्देश (मार्ग – प्रदर्शिका) के अनुसार मार्ग को पक्की सड़क होना चाहिए था. लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और ही थी. रास्ते भर मुझे भारतेंदु की बैलगाड़ी की यात्रा याद आई. हिलत डुलत तन डोलत. किसी तरह हमलोग बचते–बचाते अपने मतदान-केन्द्र प्राथमिक विद्यालय मौलाना बुद्धुचक पहुंचे. वहां विद्यालय की तरफ से दो लोग मौजूद थे. उन्होंने कमरे का ताला खोल दिया. विद्यालय के नाम पर दो कमरे थे. एक कमरे में चावल की तीन बोरियां रखी थीं, एक टेबल और पांच प्लास्टिक की पुरानी कुर्सियां. हाँ, एक कुर्सी काठ की भी थी. एक कोने में बच्चों का टूटा झूला रखा था. बताया गया कि इसी पर हमलोग एवीएम मशीन रख लेंगे कि पिछले मतदान के दौरान ऐसा ही किया गया था. तत्पश्चात हमलोगों ने बगल का दूसरा कमरा देखा. यह मूलतः रसोइघर था जिसमें एक चापाकल भी गडा था. चापाकल कुछ ऐसा कि हैंडल को नीचे की ओर दबाते तो पुनः ऊपर उठाने के लिए दूसरे आदमी की सहायता लेनी होती. एक अकेले आदमी के लिए असंभव था कि वह पानी निकाल ले. प्रबंधक महोदय ने बताया कि ऐसा नया वाशर की वजह से हो रहा है. एक दिन पहले ही बदला गया है. खैर हमलोगों ने भी मान लिया कि चलिए न से हाँ भला. मजा तो तब आया जब सुबह ऐन शौच के वक्त चापाकल खराब हो गया. पानी का संकट स्थायी भाव बनकर मुखमंडल पर चिपक गया. मैंने अपने मित्रों से मजाक किया कि चलिए अच्छा है हमलोग पश्चिमी तरीके से शौच करने का आनंद लें. याद आया कि कभी महाकवि निराला को भी ऐसे ही संकट–काल में शौच के पश्चिमी चलन का लाभ लेना पड़ा था. लेकिन मन ने पश्चिम की इस देन को अपनाने से इंकार कर दिया और हमलोग पानी की तलाश में निकल पड़े. अंततः एक चापाकल दिखा. पानी निकालकर देख लिया तो संतोष हुआ. लगा तबतक शौच की इच्छा भी परम संतोषी हो चुकी है. विद्यालय का हाल देखकर कहना पड़ रहा है कि लालू प्रसाद यादव ने ‘चरवाहा विद्यालय’ का सपना देखा था, नीतीश कुमार ने विद्यालयों को ‘चरागाह’ में तब्दील कर रखा है.



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