बात अगर यहीं खत्म हो जाती तो बात और थी...
अच्छा लगा. आपका कवि दूज का चांद देख रहा है. आजकल तो लागों की नजर से पूनों भी ओझल है.
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अच्छा लगा. आपका कवि दूज का चांद देख रहा है. आजकल तो लागों की नजर से पूनों भी ओझल है.
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