अशोक कुमार ने प्रभात खबर, पटना (11।10।2009) को ‘ आपकी कलम‘ में प्रकाशनार्थ एक पत्र लिखा जिसे 16।10।2009 को प्रकाशित किया गया। लेकिन ‘संपादन-कौशल’ या कि अज्ञान ने उल्टी गंगा बहा दी। आपके समक्ष मूल पत्र एवं प्रकाशित पत्र हू-ब-हू रखे जा रहे हैं, ताकि अखबार की विश्वसनीयता का अंदाजा आपको हो सके-
मूल पत्र
आज के अंक में अनुराग कश्यप का (की) आलेखनुमा परिचर्चा ‘सब मुरदाबाद...जाति जिंदाबाद’ पढ़ कर अफसोस हुआ। आज भी सबसे कम जातिवादी आम जनता ही है। आम आदमी के विवेक में सबसे कम जाति-पाति का बोध है। जो जितना प्रबुद्ध होने का दावा करता है, वह उतना ही जातिवादी है। यहां अखबारों में संपादक और पत्रकार जाति के आधार पर तय होता है जो अपने को लोकतंत्र का चैथा खम्भा कहता है। डाॅक्टर विलायत से पढ़कर आने के बाद अपनी जाति का ही मुंह जोहता है। मुख्यमंत्री हो कि केन्द्रीय मंत्री, सबके सब जातीय गणना पर ही अपनी गोटी फिट करते हैं। जहां जाति ही आपकी-हमारी सफलता की मंजिल तय करते (करती) हैं, वहां आपके जैसे बुद्धिजीवियों (?) से कबीर शैली में जाति की आलोचना उचित नहीं है। अनुराग जी, मेरी बात भी छापिए, आपकी जातिवादी उदघोष का दूसरा पक्ष भी तो सामने आए-अनुराग जी आपकी जाति?, -राजपूत (?) ही होंगे।
प्रकाशित पत्र
आम लोगों पर जातिवाद का कम असर
आज के अंक में अनुराग कश्यप का आलेखनुमा परिचर्चा सब मुरदाबाद, जाति जिंदबाद (जिंदाबाद) पढ़ कर अफसोस हुआ। आज भी सबसे कम जातिवादी आम जनता ही है। आम आदमी के विवेक में सबसे कम जाति-पाति का बोध है। जो जितना प्रबुद्ध होने का दावा करता है, वह उतना ही जातिवादी है। डॉक्टर विलायत से पढ़ कर आने के बाद अपनी जाति का ही मुंह जोहता है। मुख्यमंत्री हो कि केंद्रीय मंत्री, सबके सब जातीय गणना पर ही अपनी गोटी फिट करते हैं। जहां जाति ही आपकी-हमारी सफलता की मंजिल तय करते हैं, वहां जाति की आलोचना उचित नहीं है।
अशोक कुमार, राजेंद्र नगर (पटना)
1 comment:
इनको कहा जाना चाहिए -
तथाकथित संपादक!
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"
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